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12) अँधेरी बाग ( यादों के झरोके से )



शीर्षक = अँधेरी बाग



इस व्यस्त पड़ी जिंदगी में, यादों के झरोखे के माध्यम से एक बार फिर  अपने उन्ही पलों को याद करने का एक सुनेहरा अवसर मिला है, जो कि अब एक याद बन कर हमारे इर्द गिर्द ही कही रहती है 


तो आइये ऐसे ही एक पल को आपके साथ साँझा करने का प्रयास करता हूँ, उम्मीद करता हूँ आपको पसंद आएगा 


जैसा कि शीर्षक से ही पता चल रहा है , कि वो याद गार लम्हा किसी खेत खलियान, बाग बगीचे से ही जुडा होगा, और आप लोग सोच रहे होंगे कि इन भाई साहब को तो कुछ ज्यादा ही लगाव है खेत खलियान से तो मैं बताता चलू, जी मुझे बहुत लगाव है  बाग बगीचो, नर्सरी से, खेत खलियान सेकहने को हम शहर में पले बड़े है  और हमारा ताल्लुक किसी खेती बाड़ी करने वाले खानदान से भी नहीं है , लेकिन फिर भी ना जाने क्यू खेत, खलियान, बागान, फूलों की नर्सरी हमें हमेशा से ही अपनी और आकर्षित करते रहते है


कभी कभी तो मन करता है  की सब कुछ छोड़ छाड़ कर जंगलों में ही बसेरा कर लिया जाए, वही एक कुटिया बना कर पेड़ पौधों के बीच रहा जाए, क्यूंकि शहर का शोर गुल अब बुरा सा लगने लगा है


खेर छोड़िये इस बात को, मुद्दे पर आते है , अँधेरी बाग यानी की अँधेरे से घिरा हुआ बाग, जी हाँ जैसा नाम था उसका वैसा ही वो देखने में भी था 

इतनी तपती धूप में भी उसके अंदर लगे घने आम के पेड़ो की वजह से उसके अंदर सिवाय अंधकार के कुछ ना था, आम के पत्तों के झरोखे के पीछे से झाकती धूप उसके अंदर किसी ना किसी तरीके से पहुंच जाती थी  और थोड़ी बहुत रौशनी हो जाती थी  अन्यथा वहाँ अँधेरे का ही वास था

वो बाग हमारे प्राइमरी स्कूल के पीछे बना था, जहाँ हमें ये कहकर उस बाग में जाने से रोका जाता था की वहाँ एक राक्षस रहता है जो की मासूम बच्चों को अपना शिकार बना लेता है  और ये बात हम सब ही बच्चों को पता थी 


लेकिन फिर भी हम बच्चें कहा मानने वाले थे , एक दिन गर्मी के दिनों में जब आम के पेड़ कच्ची और बडी बडी खट्टी मीठी अमियों से भरे हुए थे 

जिन्हे देख अच्छे अच्छे के मुँह में पानी आ जाए, ऐसे मैं हम बच्चें तो उन्हे तोड़ कर ही दम लेने वाले थे 

एक तो उस बाग में किसी राक्षस के होने का डर  जबकि वहाँ कोई राक्षस नहीं बल्कि उस बाग की रखवाली करने के लिए रखा गया  एक खूकंखार आदमी था , जो की जंगलो की रखवाली करने की वजह से बिलकुल जंगली जैसे हो गए थे, जिन्हे देख कोई भी डर जाता था 


लेकिन हम कहा किसी की बातों में आने वाले थे , हमें तो आते जाते डाल पर लगी खट्टी मीठी अमिये चिढ़ाती रहती थी  जिसके चलते एक दिन हम सब दोस्तों ने प्लान बनाया की आज लंच टाइम में इन्हे तोडना है  कैसे भी करके, बाग में तो जा नहीं सकते थे, नहीं तो वो रखवाला पकड़ कर बांध लेता


इसलिए उस बाग के बराबर में ही बने कब्रिस्तान की तरफ उस बाग में लगे पेड़ो की कुछ शाखाए कब्रिस्तान की दीवार को लाँघती हुयी लटक रही थी जिन और बहुत सारी अमिये भी लटक रही थी , जिन्हे थोड़ी बहुत कोशिश करने के बाद तोड़ा जा सकता था 


लेकिन अब यहाँ भी एक समस्या थी की जिस समय लंच होता था  उस समय दोपहर के 12 बज जाते थे , और उस समय बारह बजने का मतलब  दोपहर का समय शुरू हो जाना बड़े बुज़ुर्गो के अनुसार भूत, प्रेत और चुड़ैलों के आने जाने का समय 

और अब ऐसे में कब्रिस्तान जाना कौन सी समझी होती, कोई एक तो नहीं जा सकता था ये तो तय था  क्यूंकि टीवी में अक्सर देखा करते थे  डरावनी फिल्मों में की कैसे कबरे इंसानों को अपने अंदर खींच लेती थी 


इन सब चीज़ो को ध्यान में रखने के बावज़ूद भी हम सब ने अपने काम को अंजाम देने की सोची और घुस गए कब्रिस्तान के अंदर , दोपहरिया होने की वजह से कब्रिस्तान तो कुछ ज्यादा ही डरावना सा लग रहा था, तेज लू और उसी के साथ उड़ती धुल और चारों और फैली ख़ामोशी बिलकुल टीवी में दिखाए देने वाले दृश्य की तरह लग रहा था

थोड़ा आगे बड़े  तो सामने  एक कुतिया नज़र आयी जो की एक गड्डे में बैठी अपने बच्चों को दूध पिला रही थी , जिसने हमें देखा और भोकने लगी, उसके भोकने ने हमें और डरा दिया लेकिन हम भागे नहीं और बहादुरी के साथ आगे बढ़ते हुए उस पड़ाव को पास कर लिया

और उस दीवार के नजदीक पहुंच गए जहाँ उस बाग की शाखाओ पर अमिये लटक रही थी , वैसे तो गली मोहल्ले में दिन में दो तीन बार ठेले वाले 2 रूपये किलो अच्छी और ताजी अमिये बेच रहे थे , लेकिन जान को जोखिम में डाल कर डाल से अमिये तोड़ कर खाने का मज़ा ही अलग था


वो डालिया दूर से तो नजदीक लग रही थी किन्तु पास जाकर देखा तो दूर थी, हमारी हाईट के मुकाबले थोड़ी देर में लंच ख़त्म होने वाला था और हमने अभी तक उस बाग से अमिये नहीं तोड़ी थी 


हम लोग कोई बड़ा सा डंडा ढूंढ़ने लगे  और हमारी मेहनत रंग लायी और हमने डंडा ढूंढ  लिया और जैसे ही अमियों पर मारा तसामने से दो आदमी आन पहुचे जिन्हे देख कर तो हम डर ही गए लेकिन वो भले आदमी थे  हमारे लिए उन्होंने अमिये तोड़ दी और हमें बताया की चोरी करना बुरी बात है, तुम बच्चें छोटे हो और इस भरी दुपहरिया में इस कब्रिस्तान में आकर अमिये तोड़ने की हिम्मत की इसलिए पहली और आख़री आप को अमिये तोड़ कर दे रहा हूँ, आज के बाद चोरी करके अमिये मत तोडना


उनकी बात हमें समझ आ गयी और हम अपने जेबे भर के अमिये ले आये , लेकिन ये क्या लंच टाइम ख़त्म हुए तो आधा घंटा निकल गया था, हम और हमारे दोस्तों को क्लास में बैठे बच्चों और इंग्लिश की अध्यापिका ने ऐसे देखा मानो हम किसी और गृह से घूम कर आये हो, उन्होंने हमसे देर से आने की वजह पूछी, वजह बताते तो चोरी करने की वजह से और पिट जाते इसलिए दूसरा कोई बहाना बना दिया लेकिन फिर भी मुर्गा बना दिया गया

उन अमियों ने तो जान ही लेली थी , टांगो में बहुत दर्द हुआ इतनी देर मुर्गा बनने के बाद लेकिन ख़ुशी भी थी की अपने मकसद में कामयाब हो गए थे , और सब को चकमा देकर अँधेरी बाग की अमिये ले आये


लेकिन फिर कसम भी खायी की आज के बाद कभी नहीं जाएंगे उस बाग की अमिये चोरी करने

अब हम क्या कोई भी उस बाग की अमिये या आम नहीं खा सकता क्यूंकि वो बाग अब रहा ही नहीं, जिस पर कभी आमो का, परिंदो का बसेरा हुआ करता था  क्यूंकि उसे काट कर अब वहाँ घर बना दिए गए है इंसानों को आशरा देने के लिए  कुछ इस तरह उसे भेट चढ़ा दिया गया


ऐसे ही किसी अन्य याद गार लम्हें को आपके साथ साँझा करने जरूर आऊंगा तब तक के लिए अलविदा


यादों के झरोखे से 

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3 Comments

Sachin dev

12-Dec-2022 07:35 PM

OSm

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शानदार

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Gunjan Kamal

12-Dec-2022 02:35 PM

बचपन में की गई शैतानियां जब अब याद आती है तो उस पल को फिर से जीने की इच्छा होती है लेकिन ऐसा कहां संभव है। बेहतरीन संस्मरण

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